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Psychological ways to understand student’s mentality

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Psychological ways to understand student’s mentality

Recently we have seen one extremely unusual case in uttarakhand (india) जिसमें एक 9th class student अपने physics टीचर के द्वारा डांटे जाने पर इतना आहत हो जाता है कि वह gun shot से टीचर को गम्भीर रूप से घायल कर देता है,
सभी की नजरों से बचाकर अपने lunch box में gun (indian pistol) छुपाकर लाना और उससे टीचर को back side से शूट करना यह extreme Aggression का सबसे वीभत्स उदाहरण है।

प्रश्न ये उठता है कि आखिर ऐसा हुआ क्यों और कैसे? एक 9th क्लास student को gun का इतना easily access कैसे मिला? निःसंदेह यह school एवं उससे अधिक परिवार की healthy student monitoring पर सवाल खड़े करता है।

आए दिन ऐसी घटनाएं देखने सुनने को मिल रहीं है, दिनबदिन ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं इन्हें समझने के लिए सबसे पहले इसके मनोवैज्ञानिक पहलू को समझना होगा।

14,15 या यूं कहें कि teenage में हमारा prefontal cortex (दिमाग का एक हिस्सा) पूरी तरह से विकसित नहीं होता है या विकसित हो रहा होता है, दिमाग का यह हिस्सा हमारे सोचने समझने की क्षमता impulse control, (rational thinking) के लिए उत्तरदायी होता है। ऐसे में Adolescent Emotional Fragility (किशोर अवस्था का नाज़ुक दौर) भावनाओं को पूरी तरह समझ नहीं पाता, वह किसी भी action से होने वाले consequnces को नहीं समझ पाते, इसे अपरिपक्वता भी कह सकते हैं।

सामान्यतया किशोर अवस्था में हम किसी भी घटना के प्रति जो कि preserved injustice, humiliation और rejection से जुड़ी हो, सामान्य से ज्यादा aggresively प्रतिक्रिया करते हैं। जैसे क्लासरूम में स्टूडेंट्स को सबके सामने डांटना या थप्पड़ मारना उनके आत्मसम्मान को अत्यधिक ठेस पहुंचाता है, ऐसे में उन्हें काउंसलिंग थेरेपी से समझाना ज्यादा उपयुक्त रहता है। टीचर की डांट को healthy रूप से समझने की बजाय बच्चे उस anger को कभी कभी violent retaliation में बदल देते हैं। ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि आज का दौर बच्चों को समय से पहले बड़ा दिखने की race में धकेल रहा है। टीनएजर वयस्क की तरह व्यवहार करना चाह रहे हैं, यह दिखावटी प्रीमेच्योरिटी कहीं न कहीं उनके विकास में बाधक बन रही है।

ऐसे में सबसे अहम role पेरेंट्स का है, उनकी जिम्मेदारी और अधिक बढ़ गई है, बच्चे की healthy monitoring करना ज़रूरी हो गया है, परवरिश केवल यह नहीं है कि उन्हें अच्छी अच्छी नैतिकता की बातें और आदर्श verbally कहें जाएं उनके स्थान पर उन्हें वैसा आचरण करना ज़रूरी है। बच्चा जो कुछ भी देखेगा जिस वातावरण में रहेगा वो सबसे अधिक प्रभाव उसके व्यक्तित्व निर्माण पर डालेगा। अन्य आदर्श की बातें उतना प्रभाव नहीं बना पाती जितना आचरण वो आपके बर्ताव से सीखेगा और यह अनेकों अनुसंधान से प्रमाणित हो चुका है। इसलिए पेरेंट्स को चाहिए कि वे बच्चों को ऐसा वातावरण दें कि वे अपने emotions को समझें उन्हें express करना जानें।

विद्यालय स्तर पर बात करें तो क्लास रूम में बच्चों को अत्यधिक डांटने या पीटने के स्थान पर उन्हें एकान्त में काउंसलिंग करके समझाना अधिक उचित रहता है, चूंकि क्लास में insult feel करना और उसे सकारात्मक रूप से समझना बच्चों के लिए कठिन कार्य बन चुका है चूंकि मशीनीकरण के प्रभाव से कोई अछूते नहीं रहे है, हर बच्चा facebook Instagram आदि social साइट्स पर एक्टिव है, जो कि उनके लिए इस अवस्था में उपयुक्त नहीं है। इन सबके प्रभाव से बच्चे अनुचित कार्य के लिए guilt feel करना बन्द कर रहे हैं, revenge, agreesion और low empathy जैसे emotinal imbalances भी इन्हीं सबका एक प्रभाव है जो कि हम सब आजकल बच्चों में देख रहे हैं।

बच्चों को ये सिखाया जाना चाहिए कि अपने emotions को व्यक्त करने का एक तरीका है, for example अगर किसी बात से बच्चा गुस्से में है तो he/she need to understand कि इसे शब्दों में कहा जा सकता है जैसे I’m angry so I’ll be quiet now, I’ll walk now. I’ll take some rest.
ये keynotes उन्हें emotinons समझने में मदद करते हैं।

हमें समझना होगा कि यह सब emotinal irregulatory का एक हिस्सा है, इसलिए ऐसी घटनाओं से बचने का सबसे उत्तम उपाय है family सपोर्ट, empathetic environment एवम् psychological understanding.

        ©Nitin Mishra Darshan.
   (Clinical psychologist/teacher)

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